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Channel: नज़्म
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याद : जिगर मुरादाबादी

आई जब उनकी याद तो आती चली गई हर नक़्शे मासिवा को मिटाती चली गई हर मन्ज़रे जमाल दिखाती चली गई जैसे उन्हीं को सामने लाती चली गई हर वाक़या क़रीबतर आता चला गया हर शै हसीन तर नज़र आती चली गई वीराना ए हयात के एक...

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नज्म : सय्यद सुबहान अंजुम

एक लम्हे के लिए तेरा खयाल चाँद तारों से मिला देता है

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रुबाईयाँ : फ़िराक़ गोरखपुरी

लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे , दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे , ये रूप, ये लोच, ये तरन्नुम, ये निखार

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नज्म : अहमद कलीम फैजपुरी

मेरी निगाह इतनी मोतबर कहाँ थी? कि देखता मैं तुझको तेरे अंदर

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सलासी : अज़ीज़ अंसारी

मालिक ए दो जहान है मौला मुझ पे भी इक नज़र करम की हो

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रुबाईयाँ : फ़िराक गोरखपुरी

लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे

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चाँद तारों का बन : मख़दूम

मोम की तरहा जलते रहे हम शहीदों के तन रातभर झिलमिलाती रही शम्मे सुबहे वतन रातभर जगमगाता रहा चाँद तारों का बन तशनगी थी मगर तशनगी में भी शरशार थे प्यासी आँखों के ख़ाली कटोरे लिए मुनतज़िर मर्द ओ ज़न

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सारे जहाँ से अच्छा : इक़बाल

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसिताँ हमारा पर्वत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा गोदी में खेलती हैं, इसकी हज़ारों नदियाँ गुलशन है जिनके दम...

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परिन्दे की फ़रयाद : इक़बाल

अगर कजरौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा मुझे फ़िक्रे जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा अगर हंगामा ए शौक़ से है लामकाँ ख़ाली ख़ता किसकी है यारब लामकाँ तेरा है या मेरा

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कबूतर (भाग 2) : कौसर सिद्दीक़ी

कबूतर तुम बहुत भोले हो तुमने एहदे नौ में भी झपटना, वार करना दुश्मनों को ज़ेर करना क्यूँ नहीं सीखा ये माना शांति के तुम पुजारी हो नबी के तुम मुहाफ़िज़ हो तुम्हारे अम्न के इस ज़ौक़ की

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कबूतर (भाग-1) : कौसर सिद्दीक़ी

कबूतर तुम बहुत भोले हो एहदे नौ में भी जीना नहीं सीखा अभी तक बेवक़ूफ़ों की तरह रोज़न में राख के चार तिनके मस्त रहते हो तुम्हारे अंडों बच्चों पर झपटती रहती हैं चीलें मगर अपनी हिफ़ाज़त करना सीखा ही नहीं तुमने

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मजाज़ की नज्म आवारा

ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

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नज़्में : प्रो. सादिक़

मोहब्बत जहाँ तुम को नफ़रत ही नफ़रत नज़र आए

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नज्म : मज़ाहिया और तंज़िया क़तआत

नाम पूछा जो एक शायर से हंस के बोले कि बूअली पुख है मैंने पूछा कि पुख से क्या मतलब मुस्कुरा कर कहा तसल्लुख है

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नज़्म : शायर अख्तर शीरानी

'आह! वो रातें, वो रातें याद आती हैं मुझे' आह, ओ सलमा! वो रातें याद आती हैं मुझे

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ग़ज़ल इन इंग्लिश

दि नेशन टाक्स इन उर्दू, दि पीपुल फ़ाइट इन उर्दू डियर रीडर देट इज़ व्हाइ, आइ राइट इन उर्दू

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नज़्म : शायर-ए-आज़म, दिलावर फ़िगार

कल इक अदीब-ओ-शायर-ओ-नाक़िद मिले हमें, कहने लगे कि आओ ज़रा बहस ही करें

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नरेश कुमार शाद के क़तआत

दोस्ती के भरम ने मार दिया, दुश्मनों से तो बच गए लेकिन दोस्तों के 'करम' ने मार दिया...

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नज़्म : अख्तर शीरानी

सावन की घटाएँ छा गईं है , बरसात की परियाँ आ गई हैं

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नज़्म : अकबर इलाहाबादी

एक बूढ़ा नहीफ़-ओ-खस्ता दराज़ इक ज़रूरत से जाता था बाज़ार

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