नज़्म : 'सियासत में'
झूट की होती है बोहतात सियासत में सच्चाई खाती है मात सियासत में दिन होता है अक्सर रात सियासत में गूँगे कर लेते हैं बात सियासत में
View Articleक़तआत : रूपायन इन्दौरी
कुछ करम में कुछ सितम में बाँट दी कुछ सवाल-ए-बेश-ओ-कम में बाँट दी ज़िन्दगी जो आप ही थी क़िब्लागाह हम ने वो देर-ओ-हरम में बाँट दी
View Articleहज़ल : वाहिद अंसारी बुरहामपुरी
हर तरफ़ जश्न-ए-बहाराँ, हर तरफ़ रंग-ए-निशात सूना-सूना है हमारे दिल का आँगन दोस्तो
View Articleनज़्म : 'जाने ग़ज़ल'
चाँद चेहरे को तो आँखों को कंवल लिक्खूँगा जब तेरे हुस्न-ए-सरापा पे ग़ज़ल लिक्खूँगा
View Articleनज़्म : 'तख़लीक़'
मरमरीं ताक़ में दीपक रख कर, तेरी आँखों को बनाया होगा सुर्मा-ए-च्श्म की ख़ातिर उसने, फिर कोई तूर जलाया होगा
View Articleरुबाइयाँ : मेहबूब राही
हर बात पे इक अपनी सी कर जाऊँगा जिस राह से चाहूँगा गुज़र जाऊँगा जीना हो तो मैं मौत को देदूँगा शिकस्त मरना हो तो बेमौत भी मर जाऊँगा
View Articleनज़्म 'बलूग़त' (वयस्क)
मेरी नज़्म मुझसे बहुत छोटी थी खेलती रहती थी पेहरों आग़ोश में मेरी आधे अधूरे मिसरे मेरे गले में बाँहें डाले झूलते रहते
View Articleजाँ निसार अख़्तर की नज़्म 'एहसास'
मैं कोई शे'र न भूले से कहूँगा तुझ पर फ़ायदा क्या जो मुकम्मल तेरी तहसीन न हो कैसे अल्फ़ाज़ के साँचे में ढलेगा ये जमाल
View Articleनज़्म---'निसार करूँ'
हसीन फूलों की रानाइयाँ निसार करूँ सितारे चाँद कभी, कहकशाँ निसार करूँ बहार पेश करूँ गुलसिताँ निसार करूँ जहाने-हुस्न की रंगीनियाँ निसार करूँ
View Articleजश्न-ए-आजादी : भारत की तरक्की रुक नहीं सकती...
वो आजादी बहिश्तों की हवाएं दम भरें जिसका। वो आजादी फरिश्ते अर्श पर चरचा करें जिसका। वो आजादी शराफत जिसकी खातिर जान तक दे दे। जवानी जीस्त के उभरे हुए अरमान तक दे दे। वो आजादी, परिन्दे जिसकी धुन में गीत...
View Articleपढ़िए, निदा फाज़ली की 5 मशहूर नज़्में
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता, बुझा सका है भला कौन वक्त के शोले, ये ऐसी आग है जिसमें धुआं नहीं मिलता
View Articleमीना कुमारी ने लिखी थी यह 5 गजलें ...
चांद तन्हा है आसमां तन्हा...चांद तनहा है आसमां तन्हा, दिल मिला है कहां-कहां तनहा, बुझ गई आस, छुप गया तारा, थरथराता रहा धुआं तन्हा
View Articleनज़्म - कली क्यूं झरे
मां मेरे कत्ल की तू हां क्यूं भरे? खिलने से पहले इक कली क्यूं झरे ?मेरे बाबुल बता, मेरी क्या ख़ता? मेरे मरने की बददुआ क्यूं करे ?
View Articleनज़्म - कली का मसलना देखा
रात के पिछले पहर मैंने वो सपना देखा, खिलने से पहले, कली का वो मसलना देखा, एक मासूम कली, कोख में मां के लेटी, सिर्फ गुनाह कि नहीं बेटा, वो थी इक बेटी, सोचे बाबुल कि जमाने में होगी हेटी, बेटी आएगी पराए...
View Articleनज्म : मेरे महबूब !
मेरे महबूब ! तुम्हारा चेहरा मेरा कुरान है, जिसे मैं अजल से अबद तक पढ़ते रहना चाहती हूं...
View ArticleHappy Mothers Day : मदर्स डे पर पढ़ें छोटी-छोटी नज़्में
एक मेहमान आने वाला है इस क़दर खुश है उसकी मां घर में जैसे भगवान आने वाला है
View Articleजश्न-ए-आजादी : जमाने को नया रास्ता दिखा दिया हमने
वो आजादी, मिली हमको बड़ी कुर्बानियां देकर। लुटाकर अपने मोती, लाजपत की पसलियां देकर। भगत, उधम, सुभाष, आजाद क्या खोए नहीं हमने। लहू से सींच दी 'जलियांवाला' की जमीं हमने
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वो आजादी, मिली हमको बड़ी कुर्बानियां देकर। लुटाकर अपने मोती, लाजपत की पसलियां देकर। भगत, उधम, सुभाष, आजाद क्या खोए नहीं हमने। लहू से सींच दी 'जलियांवाला' की जमीं हमने
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